Prem Bajaj
Literary General
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मुझे लिखना और दोस्त बनाना अच्छा लगता है ।

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क्या तुलना उस मां की सुरज- चांद - सितारों से गंगा से ,जमुना से या नदियां हज़ारों से मां की ममता का कोई मोल नहीं,इस जैसा कोई और नहीं। देती जन्म, शिक्षा, संस्कार, इन्सानियत का पाठ पढ़ाती मां ‌। जीवन पथ पर आगे बढ़ना सीखाती मां , मेरी ताकत, मेरा साहस , मेरी मां । प्रेम बजाज

दर्द को ढालते हैं नग़मों में और सोज़ को साज़ में बदलते हैं। दाद दे हमको ए ग़मे-दूनियाँ, ज़ख्म खा कर भी फूल उगलते हैं ।

मुझसे ग़मे-फ़िराक की मजबूरियाँ ना पूछ । दिल ने किसी का नाम लिया और रो दिए ।

लुटते अगर ख़िज़ा में तो कुछ बात ना थी । हम को तो रँज है कि लुटे हैं तो बहार में ।

हज़ारो ग़म मेरी फ़ितरत को बदल सकते नहीं मैं क्या करू मुझे आदत है मुस्कराने की ।

ज़िन्दगी क्या है इक पहेली है, कभी दुश्मन कभी सहेली है ।

मेरे प्यार की नाकामी ने मुझे इस मोड़ पे ला के छोड़ दिया , देखा था जिसमे अक्स अपना ,वो दर्पण ही तोड़ दिया ।

कोई ना समझ सका कि मुझ पर क्या गुज़रती है, कुछ इस तरह तेरा ग़म छिपा लिया मैने ।

कसम ले लो मै उनकी बेवफ़ाई पर नही रोती, किए अपने पे नादाम हूँ ,मुझे जी भर के रो लेने दो ।


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