इंसान अपनी अना व ग़ुरूर में जलकर ख़ुद की
अक़्ल व सलाहियत को राख कर लेता है
इक परिंदा सा है मेरे अंदर जो,
आज़ादी की ख्वाहिश भी रखता है
और क़फ़स से मोहब्बत भी है
क़फ़स = पिंजरा
ऐ ख़ुदा यह कैसा दस्तूर ए ज़िन्दगी है
चाहत ऐसी की पूरी ज़िन्दगी है !
चाह मुकम्मल नहीं दस्तूर ए मआशरे से
ख़त्म कर दो दस्तूर यह, मेरी ज़िन्दगी है
फ़ैसला नहीं कर पाता तू लोगों के डर से
ख़ौफ़ ए ख़ुदा दिल में हो पता नहीं कल ज़िन्दगी है