Adil Ahmad
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​ ​इंसान अपनी अना व ग़ुरूर में जलकर ख़ुद की अक़्ल व सलाहियत को राख कर लेता है

इक परिंदा सा है मेरे अंदर जो, आज़ादी की ख्वाहिश भी रखता है और क़फ़स से मोहब्बत भी है क़फ़स = पिंजरा

ऐ ख़ुदा यह कैसा दस्तूर ए ज़िन्दगी है चाहत ऐसी की पूरी ज़िन्दगी है ! चाह मुकम्मल नहीं दस्तूर ए मआशरे से ख़त्म कर दो दस्तूर यह, मेरी ज़िन्दगी है फ़ैसला नहीं कर पाता तू लोगों के डर से ख़ौफ़ ए ख़ुदा दिल में हो पता नहीं कल ज़िन्दगी है


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