ये किसने कह दिया कि
मैं भूल गया तुझे..
तेरे कंधे का वो तिल,
तक याद है मुझे..!
अक्सर तेरी यादों को अपने साथ
चाय पर बुलाया करता हूं..
आजकल इस तन्हाई में
खुद से कुछ इस तरह
मुलाक़ात करता हूँ..!
काळीज मी आणि ठोका तू..
मला एवढच़ म्हणायच़ होतं..
तुझं माझं नशीब..
त्याने असचं का लिहायच़ होतं..?
स्याही नही दर्द लिखता हूँ...
बीते लम्हे और तन्हाई से सीखता हूँ...
जमाने के बदलते रंग और वसूल से
कुछ खामोश आँखों का मैं दर्द लिखता हूँ..