अब तक उदासी में जीते रहे हम, क्यों न अब हंसते हैं
धूप में तपी तमन्नाएं, चलो अब छांव तले गले मिलते हैं
☆राजेश कटरे
मैं ! भूगोल विषय के कुशाग्र बुद्धि वाले छात्रों के स्मृतिपटल पर अमिट किसी उपजाऊ डेल्टा जैसे हूँ जिसकी भौगोलिक स्थिति वे मानचित्र पर अंकित करने में असमर्थ हैं ।
☆राजेश कटरे