Shraddha Gaur
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कलम उठाना और कुछ लिख पाना मम्मी की गोद में बैठ कर सीखा था और आज जो लिखती हूं वो अनुभव है ।

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कभी बहकने लगना तो मेरी एक बात याद करना, यूं तो तूफ़ान रोज आते नहीं, चर्चा जुबां पर मौसम बना देती है।

घर जाने पर जो मां प्यार से सर सहलाती है, पिता की तरफ से मेरा मनपसंद बनाने की फरमाइशें आती हैं, बहन - भाई के झगड़े में भी प्यार है झलकता, घर से दूर होने पर रिश्तों की पोटली की याद आती है।

घर जाने पर जो मां प्यार से सर सहलाती है, पिता की तरफ से मेरा मनपसंद बनाने की फरमाइशें आती हैं, बहन - भाई के झगड़े में भी प्यार है झलकता, घर से दूर होने पर रिश्तों की पोटली की याद आती है।

खत्म होती नहीं यह इंतजार वाली यह रातें , मालूम पड़ता है सुबह की किरण मन के ताप मिटाएगी।

खत्म होती नहीं यह इंतजार वाली यह रातें , मालूम पड़ता है सुबह की किरण मन के ताप मिटाएगी।

खत्म होती नहीं यह इंतजार वाली यह रातें , मालूम पड़ता है सुबह की किरण मन के ताप मिटाएगी।

खत्म होती नहीं यह इंतजार वाली यह रातें , मालूम पड़ता है सुबह की किरण मन के ताप मिटाएगी।

खत्म होती नहीं यह इंतजार वाली यह रातें , मालूम पड़ता है सुबह की किरण मन के ताप मिटाएगी।


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