डॉ दिलीप बच्चानी
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कर्म और वचन दोनो से राष्ट्रवादी।

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रात भर मोबाइल पर चलती रहती है उंगलिया सीने पर किताब रख सोये जमाना बीत गया डॉ दिलीप बच्चानी

रात भर मोबाइल पर चलती रहती है उंगलिया सीने पर किताब रख सोये जमाना बीत गया डॉ दिलीप बच्चानी

सफलता विफलता का विचार व्यर्थ है हौसला हो मजबूत इतनी ही शर्त है। डॉ दिलीप बच्चानी।

वो बिताना चाहते हैं कई लम्हे मेरे साथ पर मेरे रहते नही मेरे चले जाने के बाद।

सीमा प्रहरी कर रहे स्वास्थ्य प्रहरियों का सम्मान एक देश बचाने में जुटा दूजा बचा रहा प्राण।

एक मुद्दत से आरज़ू थी फुरसत की ... मिली , तो इस शर्त पे कि किसी से ना मिलो ..!!

सफलता विफलता का विचार व्यर्थ है हौसला हो मजबूत इतनी ही शर्त है। डॉ दिलीप बच्चानी।

समस्या ये है कि कुछ लोग धर्म को मानते है पर धर्म की नही मानते।

मुखौटे ही मुखौटे मिलते है यहाँ तरस गया हूँ असल चेहरों के लिए।


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