बिखरें हुए शब्दों और लफ़्ज़ों को चुन उन्हें धागों में पिरोकर कभी माला बनाती हुँ तो कभी गजरा... शब्दों से फ़िजा गुनगुनाती है तो लफ़्ज़ों से वह महकने लगती है...
Share with friendsसमाज क्या है? हम और तुम,नहीं ? ना तुम बुरे और ना ही मै फिर खाप पंचायत का ख़ौफ़ क्यों हो प्रेमी जोड़ों में?
पत्थर की मूर्तियाँ तुम्हे भाती है और गीत गाती सी लगती है कभी तुम नज़रअंदाज करके ही मुझे पत्थर की मूरत बना देते हो.....