आदतें बदली हैं रफ़्तार से मैंने,
दूसरों के साथ चलने के लिए,
अब थोड़ा सा सुस्ता लूँ मैं,
खुद अपने साथ चलने के लिये.
ऋतु वर्मा
वो अपनी खुशियों का इश्तिहार करते रहे,
गरीबों के दिल में हसरतों की शमा जलाते रहे.
ऋतु वर्मा
कुछ यादों के हसीन पल दे दे,
धो लूँगी बैठ कर हादसे ज़िन्दगी के.
ऋतु वर्मा
आम से ख़ास होने का आजकल ये रिवाज़ हैं,
थोड़ी सी बेपरवाही और चुटकी भर अब वो गुस्ताख़ हैं.
ऋतु वर्मा
वो कुछ याद नही रख पाता हैं
मैं कुछ भूल नही पाती हूँ
इसलिए इश्क़ गहरा और अधूरा हुआ हैं
ऋतु वर्मा
वो अपनी खुशियों का इश्तिहार करते रहे ,गरीबो के दिल में हसरतों के दिये जलते रहे.
ऋतु वर्मा
आदते कितनी बदली हैं मैंने दूसरों के साथ चलने के लिए,
अब थोड़ा सा सुस्ता लूँ खुद अपने साथ चलने के लिए.