मीठा कम पत्ती तेज़ रखना दूध में पानी थोड़ा गुरेज़ रखना आज संग मेरे उनकी यादें आईं हैं शऊर-ए-दश्त थोड़ा सहेज़ रखना - अBhiषेk सिंh रajपुt गुरेज़-कम, शऊर-तरीक़ा, दश्त-हाथ,
इरादे तेरे हैं गमगीन शायद... लिपट के मुझसे, मुझे ये बदनाम ना कर दे शायद... मैं भी हूँ शातिर इरादी क्यों ना होना चाहूँ सरेआम शायद.. *- अBhiषेk सिंh रajपुt*
मुश्त-ए-ख़ाक, हो जाएगा हर शख़्स एक दिन ग़ुरूर ईमान का,होना चाहिए दौलत का नहीं मुश्त-ए-ख़ाक - मुट्ठी भर धूल #seedibaat
बस यूँही चला जाता हूँ मंज़िल ए राह पे पैरों में छालों की परवाह किया बिना मैं मज़दूर हूँ साहब नहीं जी सकता अपने स्वाभिमान के बिना