एक शख़्स जो मुझे ताना ए जान देता है।
मरने लगती हूं तो मरने भी कहां देता है।।
तेरी शर्तो पर ही गर करना है तुझको कबूल।
ये सहूलत तो मुझे सारा जहान देता है।।
किताब 📖सा बनों,
सब कुछ सिखा कर भी
खामोश रहो।
हर रोज़ चुपके से निकल आते हैं नए पत्ते...
यादों के दरख्तों में क्यूँ पतझड़ नहीं होते...!!!
हर रोज़ चुपके से निकल आते हैं नए पत्ते...
यादों के दरख्तों में क्यूँ पतझड़ नहीं होते...!!!
तुम्हें याद रखने
का अर्थ है,
ढेर सारी उम्मीदें,
अभी भी हैं...
"औरतें...."
'ब्रेल लिपि' नहीं
जिन्हें समझने के लिए
छूना जरूरी हो...
फिर मुख्तसर कर दी गुफ्तगू उसने...
यकीनन उसके राब्ते में और कोई आ गया।।
भूलें हैं रफ़ता रफ़ता उन्हें मुद्दतों में हम ,
किश्तों में ख़ुदकुशी का मज़ा हम से पूछिए....