कहने से पहले कुछ भी, लफ्ज़ तौलता हूँ मैं
वर्ना बिखरते सारे रिश्ते, जानता हूँ मैं
हाँ मैं थोड़ा जज़्बाती थोड़ा खुदगर्ज़ भी हूँ
तन्हा होता हूँ जब तो साथी ढूँडता हूँ मैं
~ समर
काश कभी ऐसा हो कि वो शिरीन और हम फ़रहाद हो जाये
जो मान गई वो तो हम उसकी माँ के लाडले दामाद हो जाये
और उससे चैटिंग के खातिर ही तो ऑनलाइन आया हूँ मैं
कम्बख्त जिस दिन ऑनलाइन ना आये, डेटा बर्बाद हो जाये
~ समर प्रदीप