कंचन बिखरा चारों और मेरे मोहे कोई रत्न ना भायो देख सांवरिया तेरा चेहरा मन मोरा भरमायो।। -कंचन सिंगला
जीवन का सूर्यास्त हो या ढ़लते दिन का सूर्यास्त हो सूर्यास्त हमेशा सूर्योदय की ओर इशारा करता है। कंचन सिंगला
गर्मी की ऋतु जब आती है तन से कपड़ों का बोझ कम कर जाती है। रंग रसीले फलों और जूस भर लाती है। रोज आइसक्रीम और कुल्फी के लिए ललचाती है। कंचन सिंगला
जीवन पथ की इस यात्रा पर चलते जाना तू राही, जो कुछ भी पीछे कहीं छूट गया हो उसे आगे समेटता जाना तू राही ।। कंचन सिंगला
" महिला " एक महिला होने से पहले होती है.... एक बेटी, बहन वक्त बदलता है, रिश्ते बदलते हैं....तब वह बन जाती है किसी की भाभी, चाची, मौसी और बुआ लेकिन इन सबके ऊपर वह होती है....एक मां ।। महिला सिर्फ एक महिला नहीं होती वह अपने अंदर अनगिनत रूप समेटे हुए होती है। कंचन सिंगला
अपनों से बनता है परिवार प्यार से जुड़ता है परिवार जोड़ जोड़ कर कच्चे धागों को प्यार से सींच कर जड़ों को इसकी सजता है परिवार ।।
है ये परीक्षा की घड़ी वक्त आया इम्तिहानों का अपने होंसलो की पहचान कर लड़कर हर मुश्किल से पहुंचना है एक नए मुकाम पर।। -कंचन सिंगला
इंसा इंसा का न रहा आज देखो छिड़ा कहीं भीषण युद्ध आज तुम माफ कर दो इंसानियत को इंसानियत शर्मिंदा है इंसा से आज ।। -कंचन सिंगला ©®