“दीपावली की शुभकामना” जलाओ दीप खुशिओं के ,मिलन के गीत तुम गाओ ! लगाओ तुम गले सबको ,सभी को मीत तुम मानो !! रुके नहीं जश्न वर्षों भर, सदा हो प्यार की बारिश ! सजायें प्यार का गुलशन, गुजें हर रात ये आतिश !! यही शुभकामना कर लूँ ,करूँ मैं सब का अभिनंदन ! सभी विजयी रहें जग में , लगाऊँ भाल में चन्दन !! @ डॉ लक्ष्मण झा परिमल
बड़े बन जाओ लोगों में गल्ती सुधार तुम कर लो ! कभी भी तुमको जो बोले उसे स्वीकार तुम कर लो !! गलतियाँ होतीं हैं सबसे सिखाती गलतियाँ हमको ! विनम्रता के गुणों को भी सिखाती प्यार से हमको !! @ डॉ लक्ष्मण झा परिमल
जब असहिष्णुता सर पे चोट करती है ,मंहगाईयाँ सर चढ़ के जब तांडव मचाती है ,तभी कविता भी द्रवित होकर नयनों से आँसू बहाती है@परिमल
चलो विश्राम को छोड़े नया कोई काम ही कर लें ! पड़ें हैं वर्षों से पीड़ित उनका उत्थान ही कर लें !! @ परिमल
चलो विश्राम को छोड़े नया कोई काम ही कर लें ! पड़ें हैं वर्षों से पीड़ित उनका उत्थान ही कर लें !! @ परिमल
हमें लोगों से ही जुड़कर नया कोई काम करना है ! अकेले कुछ भी न होगा सबों के साथ चलना है !! @ डॉ लक्ष्मण झा परिमल
करो तुम बात ही सबसे, उसे अपना बना लो तुम ! करो तुम प्यार की बातें, उसे खुद में छुपा लो तुम !! @ परिमल