मैं चला, राहें अनेक मिली इक राह प्यार की ओर चली तितलियां रंग बिरंगी दिखी और दिल बाग़-बाग़ हो चली । झुमते-लहराते प्यार के साये में चलता चलता एक किनारे पहुँचा इक दायें उड़ चली, दूजी बायें क्यों? दोराहे पर दिल आ पहुँचा ।
न उम्र भर सुख है और न दुःख पल-पल आगे बढ़ती है ये दुनिया जो होना था वो हो गया, आगे बढ़ क्यों इतनी चिंता करता है "मनसुख"।
समय के साथ घड़ी के कांटे की तरह हर पल तेरे संग साया बन कर पीछे पीछे कदम से कदम मिलाकर जन्मों जन्म तक चलना चाहता हूँ ।