विषमता बंधन क्या सिर्फ अबलाओं को , नहीं सबलों को ये स्वीकार , जाल बिछा क्या इन्हीं को , नहीं उनको अंगीकार , रूढ़ियां और आदर्श क्या इन्हीं को , नहीं जकड़ते हैं उनको , नहीं पिसते ये इन पाटों में , शायद यही फासला है , पुरुष और नारी में ।।
विश्वास विश्वास है । सत्य का आभाष है ।। प्रगति का आगाज है । जीने का आभाष है ।। विश्वास ही विश्वेश है । विश्वास ही अवशेष है ।। विश्वास ही परमात्मा है । विश्वास ही जीवात्मा है ।।
गुरु है वो दिव्य प्रकाश स्वयं जलकर भी मिटाता अंधकार । स्वयं झेलता है क्लेश सब में भरता समान संस्कार ।।