स्कूल में प्रिंसिपल थी अब गृहणी हूँ ,स्वेच्छिक निवृत्ति ली है , लेखन मेरा प्रथम शौक है ,कक्षा दसवीं से लिखना शुरू किया ,बहुत से पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ छपीं ,बहुत से सम्मान मिले ,अभी मेरा पहला साँझा लघुकथा संग्रह "स्पर्श ज़िन्दगी का " निकला है ।
Share with friendsरोज़ डे पर गुलाब देकर प्यार का वादा करना मुझसे , काँटो के बीच ज्यों रहता गुलाब मुस्कुराता , मुझे भी सुख दुख में हरदम तुम्हारा प्यार हँसाये मंजु सराफ
फ़टी थी जेब जब हमारी सारे अपनों ने किनारा कर लिया , नोटों ने दिया जब साथ जेब का सारा कारवाँ पीछे पीछे हो चला मंजु सराफ
नोटों से जो भरी थी जेब तो सारे रिश्ते महफूज थे , फटी जो जेब हमारी ,तो सिक्कों की तरह सारे रिश्ते हाथ से हमारे फिसल गये मंजु सराफ
ज़िन्दगी कोई खेल नहीं ,होता बस यहाँ हरदम दो दिलों का मेल नहीं , मानो तो जीवन उपवन है खुशियों का , गर ना मानो तो ज़िन्दगी जेल ही है यहाँ मंजु सराफ