Manju Saraf
Literary Colonel
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स्कूल में प्रिंसिपल थी अब गृहणी हूँ ,स्वेच्छिक निवृत्ति ली है , लेखन मेरा प्रथम शौक है ,कक्षा दसवीं से लिखना शुरू किया ,बहुत से पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ छपीं ,बहुत से सम्मान मिले ,अभी मेरा पहला साँझा लघुकथा संग्रह "स्पर्श ज़िन्दगी का " निकला है ।

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कभी सिरहाने के सपने कभी हकीकत की चालें , मिले जब धोखा अपनों से , दिल पर चलें बरछी और भालें

कितनी नाराज है आज कुदरत भी , शुद्ध हवा है चारों ओर , तो मुँह पर सबके मास्क है मंजु सराफ

कितनी नाराज है आज कुदरत भी , शुद्ध हवा है चारों ओर , तो मुँह पर सबके मास्क है मंजु सराफ

रोज़ डे पर गुलाब देकर प्यार का वादा करना मुझसे , काँटो के बीच ज्यों रहता गुलाब मुस्कुराता , मुझे भी सुख दुख में हरदम तुम्हारा प्यार हँसाये मंजु सराफ

फ़टी थी जेब जब हमारी सारे अपनों ने किनारा कर लिया , नोटों ने दिया जब साथ जेब का सारा कारवाँ पीछे पीछे हो चला मंजु सराफ

नोटों से जो भरी थी जेब तो सारे रिश्ते महफूज थे , फटी जो जेब हमारी ,तो सिक्कों की तरह सारे रिश्ते हाथ से हमारे फिसल गये मंजु सराफ

कुछ कहा ना सुना ,न तुम कुछ बोलो ना जानो , इस दुनिया आकर जाना है ,चाहे मानो या ना मानो मंजु सराफ

ज़िन्दगी कोई खेल नहीं ,होता बस यहाँ हरदम दो दिलों का मेल नहीं , मानो तो जीवन उपवन है खुशियों का , गर ना मानो तो ज़िन्दगी जेल ही है यहाँ मंजु सराफ

ज़िन्दगी खूबसूरत सा ख्वाब है , बस आँखे बंद कर लो और महसूस करते जाओ ,खोली जो तुमने आँखे अपनी , यथार्थ का धरातल सख्त है बड़ा ,चकनाचूर ना हो जाएं ख्वाहिशें यहाँ मंजु सराफ


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