यह कैसा है दृश्य धूप में छाया है, लिपट धरा से गया गगन का साया है, अम्बर में यह कैसा सागर तैर रहा, धरती की जो प्यास बुझाने आया है। a m prahari
सिर्फ जो उठती लहर व धार देखेगा ध्येय अपना भूलकर मझधार देखेगा, छोड़ दे जो हारकर पतवार मौजों से वो भला कैसे नदी के पार देखेगा। a m prahari
शिक्षक है जो ज्ञान -दीप से तम को दूर करे सही राह दिखलाकर सबका सब अज्ञान हरे, शिक्षक वह जो कठिन समय में जीने का गुर देता प्रेम, दया, समरसता की हर उर में नींव धरे। a m prahari
दीन-दयाल राम घर आये, सुर,नर-नारी परम सुख पाये। देश-विदेश पुलक अति भारी,पूर्ण कामना जनमन सारी। द्वार -द्वार नव दीप जले हैं, जस सौ-सूरज गगन तले हैं। राम-नाम भय,संकट-त्राता,चरण-कमल रज चाहूँ दाता। a m prahari
हैं राम आये अवध में पावन हुआ यह देश है घर-वीथिका दीपक जले दिखता नहीं तम शेष है, जग हो गया है राममय,बरसी कृपा रघुनाथ की हो पाप पर जय पुण्य का नववर्ष का संदेश है। a m prahari