अपने साये पर भी अब तो शक होने लगा है!कुछ इस तरह से गुज़रा हूँ, दौर ऐ बेवफाई से!!
"प्रवेश"
मुक़्क़र्र खुद को ही सजा की तुमने,
ये कहाँ जायज़ था!
आख़िर, हम भी तो गुनहगार थे,
तेरे इश्क़ में!
" प्रवेश "
मुझे जी लेने दो,
झूठ के भ्रम में यारों,
सच में तो अपनों की,
हकीकत नज़र आती है !
" प्रवेश "
कैसे शामिल होता,
मैं खुशियों में तुम्हारी,
तेरे दिए गम से ही,
मुझे फुरसत नहीं मिलती !
" प्रवेश "
"रावण की इच्छा"
कभी अपनी बुराइयों को भी जलाया होता,
मुझे हर बरस जलाने वालों !
" प्रवेश "
कभी जिन्दा थे,
तो वो रखते थे, दिल में बसाकर,
आज मर गए तो,
घर में रखना भी गवाँरा नहीं समझा !
" प्रवेश "
आज जी भर के बरस,
ऐ -आसमाँ,
कि, मेरी बेबसी पर,
ज़रा तू भी तो रो के देख !
" प्रवेश "
लाचार किसान का,
धड़कता है कलेजा,
तू जब भी बरसता है,
बेवक़्त ऊपर वाले !
" प्रवेश "
फ़िरता हूँ बेख़बर,
जिंदगी की जद्दोजहद में,
जाँच लेता हूँ खैरियत अपनी,
उसकी मुस्कान देखकर !
" प्रवेश "