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Suresh Sachan Patel
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मत जलाओ दिल में नफरत की अग्नि। बरबाद जीवन कर देगी यह अग्नि।

जीवन में अग्नि जरूरी है। पर रखना थोड़ी दूरी है।

दिल पूछता है अक्सर आखिर हासिल क्या हुआ तुझे रिश्ते खुन के निभाते निभाते। तेरे अपनो ने कितना साथ दिया माली का बाग सजाते सजाते। कुछ भी साथ गया क्या जो जमा किया तुने जीवन में कमाते कमाते । न जाने क्यूँ उत्तर बस एक हीं मिला जिसे अपना समझा उन्होंने ही जला दिया मुझे दुनिया से जाते जाते। अफसोस सिर्फ इतना रह गया काश छोड़ मोह माया धन दौलत की बीता पाता कुछ पल प्यार की दुनिया बसाते बसाते सुरेश सचान पटेल

क्या खुब लिखा है... समय बहाकर ले जाता है नाम और निशान... कोई "हम" में रह जाता है कोई "अहम" में रह जाता है... बोल मीठे ना हो तो "हिचकीयाँ" भी नहीं आती... घर बड़ा हो या छोटा अगर "मिठास" ना हो तो "इंसान" तो क्या "चिंटीयां" भी नहीं आती..!!

सुबह का प्रणाम सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि अपनेपन का एहसास भी है, ताकि रिश्ते भी ज़िंदा रहें और यादें भी बनी रहें।

धनवान वो इंसान होता हैं... जो दुसरो को अपनी मुस्कुराहट देकर उनका दिल जीत लेता

भरोसा तोड़ने वाले के लिए बस एक यही सज़ा काफ़ी है, उसको ज़िन्दगी भर की ख़ामोशी तोहफ़े में दे दी जाए.

माॅ॑ है घर की शान निराली। फैली रहती घर में हरियाली। बिन माॅ॑ के सूना घर आॅ॑गन। माॅ॑ बिन नहीं लगता है मन। कभी न दिल माॅ॑ का दुखाना। माॅ॑ बिन नहीं कहीं ठिकाना। ममता की मूरत बस माॅ॑ है। खुशियों का सागर भी माॅ॑ है।


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