Lalita Rautela
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पथ के कांटे बने अपने हैं चुनकर कैसे मंजिल पाऊँ। हासिल करना लक्ष्य जरूरी चुभते हरपल कैसे इन्हें हटाऊँ।।

इंसान जब एक साथ लड़ता है बीमारी,भूख और अकेलेपन से, तो वो सचमुच अंदर से टूटता है।

ऐ इन्साँ! न बढ़ा अपनी जरूरतें, न पहुँचा किसी को नुक्साँ। न दिल किसी का इस कदर दुःखा, कल फिर निग़ाहों से मिलाना निगाहें, न हो तेरे लिए आसाँ।।

औरतें ही क्यों फर्ज की बेदी पर हर रोज़ चढ़ाई जाती हैं। पुरुष है सदृश्य भगवान क्यों हर रोज़ सिखाई जाती हैं।

पहेली सा धागों में उलझा, बड़ा अजीब है जिंदगी तेरा फ़लसफ़ा

वध करना ही है तो करो अपने भीतर के रावण का, जो करता है हर रोज हरण बेटी,बहु,पत्नी रूपी सीता का।


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