बचपन से ही पढ़ने-लिखने का शौक है.... अधिकांश पढ़ना और कभी कुछ लिख देने का प्रयास मात्र हैं मेरी रचनाएं... और क्या कहूँ अपने बारे में...आप कुछ कहिएगा तो अच्छा लगेगा।
पहले से अच्छी है या पहले ही अच्छी थी.. तबीयत को गिला है कि अब वे पूछते नहीं। © केशव शुक्ल
"डाल में पड़े झूले की तरह ही होते हैं सम्बंध! पेंग बराबर लगनी चाहिए।"