Monika Gopa
Literary Captain
AUTHOR OF THE YEAR 2020 - NOMINEE

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भीतर बहुत कुछ टूटता रहा.... वो ओढ़ के बैठी रही ...मुस्कुराहटें ।।

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दुःख की उपलब्धि उसका निजत्व ही है सार्वभौमिक होते ही उसकी संवेदना सतही हो जाती है.....!!

.....कुछ न कह पाने की पीड़ा , सहने की पीड़ा से भी सघन होती है..!!

शाख से गिरते पत्ते और उम्र से फिसलते बरस... लौटते नहीं... पर छोड़ जाते है , अपनी स्मृति , नयी कोंपलों के रूप में...। जो जगह तो भरते है,पर अनुभव की सलवटें नहीं...!!

सब और अंधकार है ?? आंखें बंद कर केवल भीतरी गोता लगाएँ... सारे प्रश्नों के उत्तर भीतर ही है !!

मन सह ले ख़ड्ग को वार भी.. न सह पाए..शब्द -शर.. गड़े जो हिरदे में..आखर -कंटक सों.. आत्म सजल कर जाएं !!


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