Vaidehi Singh
Literary Colonel
AUTHOR OF THE YEAR 2021 - NOMINEE

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I am a student of electronics and communication engineering. I am here to showcase my poems. Whoever visits my profile will go satisfied. Hope you will like it.

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चलते-चलते इतनी ठोकरें लगीं कि मरहम भी चोट सा लगता है|

दिलबर के दीदार को तरसती हैं निगाहें, और जुदाई में तो चाँद की ठंडक से भी निकलती हैं जलन की आहें। फिर चकोर की चाहत परवान चढ़ी है, ज़रा देखो आज चाँद की रोशनी बढ़ी है। गौर किया जब चाँद की खूबसूरती पर, तब याद आया, कि ऐसा ही तो दिखता है मेरा दिलबर।

खोट तो देखने वालों की नजरों में है, जिन्हें हम हंसते हुए अच्छे नहीं लगते हैं। दिल्लगी सीखनी है तो दुश्मनों से सीखो, जिन्हें हम रोते हुए भी अच्छे लगते हैं।


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