** निशा बनती संगिनी मेरी दुःख में मन सम्भलता कि चाँद बैरी निकल आया पूनों का। ** मिलन की रात जब आई चली ख़ूब पुरवाई।बादलों ने भी घेरा डाला ,बैरी चन्दा भी मुख मोड़ गया। ** दिल में उम्मीद का दिया जलाए हैं बैठे। दूज का चाँद बैरी -सा आया और तुरंत लुप्त हो गया। **सत्यवती मौर्य
करनी का फल है कि आज बेटों से कन्याएँ ब्याहने को नहीं हैं। संतुलन बनाने को पृथ्वी पर,बेटे की तरह बेटियां भी ज़रूरी है। *सत्यवती मौर्य
साथी ,जीवनसाथी वो जो जीवन के ऊंचे नीचे रास्तों पर हर समय साथ दे और इंसान के रूप में एक दूसरे के जीवन में रहने का सम्मान करें।