मो० आशिक
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कविताएँ लिखना शौक ही नहीं कविता से इश्क होना भी है।

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शामे यूं चली जाती है बगैर इत्तिला किये महिने वर्ष में चले गये बगैर एक मुलाकात के

तुम्हारी यादों के उजाले में आज फिर मैंने एक अंधेरी रात गुजार दी स्वप्न के दीवार पर शब्दों के रेखाओं से तुम्हारी एक तस्वीर सजा दी।। 'मो० आशिक'

कब तक गैरों से पुछी जायेगी मेरी खैरियत चलो आज गैर समझ पुछ लो तुम मेरी तबयीत

कहाँ दिल खोल बैठे प्यारे इस मतलब की मण्डी में यहाँ स्वार्थ के .पलड़े पर माप - तौल दिये जाते है खैरियत - दुआ - सलाम ।। - MD ASHIQUE

तुम्हें पा लेने की जद्दोजहद ख्वाहिश नहीं बस ख्याल खोने से डर लगता है। - Md ASHIQUE

आसानी से जो कविता समझ आ जाये वह बड़ी बेचैनी में लिखी होती है।।


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