abhishek vadodariya

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धुआं धुआं हो चुका हूं बस कोई कश सा खींच ले फिर भले जहां ए बादल में यूहीं भटक जाऊ पर किसिके दर्द लेकर जिंदगी मुनासिब तो होगी ।

जिंदगी एक ही तो ऐसा रंगमंच है जहां किरदार अधूरे होने पर भी कहानियां ख़तम हो जाती है ।

धुआ धुआ हो चुका हूं बस अब कोई कश सा खींच ले भले फिर जहां-ए-बादल में यूहीं भटक जाऊ पर किसिके दर्द लेकर जिंदगी मुनासिब तो होगी ।


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