लालच...
एक ऐसी गुफा है;
जो,
सबकुछ निगल सकती है;
बिना पश्चात्ताप के,
बिना डकार लिये।
नाम का झाँसा, इनाम का लालच,
नोटों की रिश्वत का उपहार,
हर दफ़्तर की टेबल के नीचे चलता,
बेमानी के शासन का भ्रष्टाचार।
ज़िंदगी में शाश्वत,
जर, जमीं, न जोरु रहेगी।
ज़िंदगी की कहानी,
'मौत'
तज़ुर्बे से कहती रहेगी।
गिरगिट तो बे-वजह बदनाम है,
आदमी से ज्यादा रंग बदलना तो उसे भी नहीं आता।
बड़ी देर... हो गई आने में,
वक्त गुजर गया, ज़िंदगी बनाने में।
उम्र... बचपन ले गई,
जवानी, वक्त बहा ले गया,
बुढ़ापे ने सारी इच्छाएँ छीन ली,
ज़िंदगी किसकी बनी ?
बड़ी देर हो गई, यह समझ आने में।
उसके...बिना छत वाले मकान में कोई दीवार नहीं है।
उसके...घर की धूलभरी फर्श में कोई ईंट नहीं लगी है।
उसके...असुविधा भरे मकान में कोई रास्ता नहीं आता।
यहाँ तक; कि उस मकान की जमीन उसके हिस्से नहीं आती।
फिर भी, उसके मकान में वोटों की गिनती होती है
और वह...ऐसे कई मकानों का 'विस्थापित' मालिक है।