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ख़ामोशी चाहता हूँ मैं लेकिन तुम न कहते हुए भी बहुत कुछ कहती हो तोड़ देती है उन बांधों को जिनके पीछे उम्मीद भरी बातें सहेजे रखता हूँ मैं
जाड़े की सुबह मिलता है सुकून जब तुम थाम मेरे हाथ कहती हो "आज ठंड थोड़ी ज्यादा है न"