ॴधियां भी रूख मोड़ न सके, भीड़ से जुदा मैं वो चिराग़ हूँ ।
आज भी वाकिफ नहीं मैं तेरी, बदलती राहों से और बा़ँहों से। आज भी वाकिफ नहीं मैं तेरी, बदलती राहों से और बा़ँहों से।