मैं उसके शहर का मुसाफिर था,
नफा देखकर मेरा कत्ल किया गया।
हर दफा उसके मक़सद के गुलाम थे हम,
जब कत्ल हुआ हम लावारिश हो गए।
एक कदम उसके शहर में रखा,
फिर ऐसा क्या भूचाल आया।
मेरे शहर में हर तरफ उसके लोग थे,
कुछ कत्ल किए कुछ मौन किए।।
मेरी उलझनों के किरदार भी मेरे थे ,
ख्वाहिशें दबती रही पर मैं मौन रहा।
मैं मुस्करा देता हूं अपनी मासूमियत पर
क्यों ये दर्द बेवजह मैने मोल ले लिया,
तरीका नही आया था उसको मनाने का
बिना झगड़ा ये पंगा क्यों ले लिया मैने।