सत्य बदलकर झूठ में, लगा रहे हैं आग।
झुलसें कलियाँ फूल औ, झुलस रहे हैं बाग।।
✍️अरविन्द त्रिवेदी
सत्य बदलकर झूठ में, लगा रहे हैं आग।
झुलसें कलियाँ फूल औ, झुलस रहे हैं बाग।।
✍️अरविन्द त्रिवेदी
मानव मौसम की तरह, पल-पल बदले रूप ।
कभी लगे कुहरा घना, कभी सुनहरी धूप ।।
✍️ अरविन्द त्रिवेदी
शब्द हुए जब मौन सब, नैन बोलते बोल ।
प्रेमी मन की पीर भी, जग में है अनमोल ।।
✍️ अरविन्द त्रिवेदी
ऐ साकी बता दे नशा क्या बला है,
अजी हुस्न की फिर अदाओं से पूछो ।
✍️ अरविन्द त्रिवेदी
समरांगण सी जिन्दगी, सुख - दुख दो हैं पक्ष ।
विजय हस्त किसका गहे, प्रश्न यही है यक्ष ?
✍️ अरविन्द त्रिवेदी
ढ़ाई अक्षर प्रेम में, मगर अर्थ है गूढ़ ।
जो समझा सो पा गया, वरना दर - दर ढूँढ़ ।।
✍️ अरविन्द त्रिवेदी