मै किसी शायर को अगर मना पाऊँ तो भी बहोत है,
रंज़ ए ग़म जिंदगी का अगर भूला पाऊँ तो भी बहोत है!
भटक़ गया है हर कोई वफ़ा ए मोहब्बत के ख़ातिर,
किसी राहग़ीर को मै अगर मना पाऊँ तो भी बहोत है!
मुझको क़तई यह ग़म नही है वह सदा सलामत रहे,
जब मिलेगा मैं अपनी नज़र झुका पाऊँ तो भी बहोत है!
जब होगा उनकों... Read more
मै किसी शायर को अगर मना पाऊँ तो भी बहोत है,
रंज़ ए ग़म जिंदगी का अगर भूला पाऊँ तो भी बहोत है!
भटक़ गया है हर कोई वफ़ा ए मोहब्बत के ख़ातिर,
किसी राहग़ीर को मै अगर मना पाऊँ तो भी बहोत है!
मुझको क़तई यह ग़म नही है वह सदा सलामत रहे,
जब मिलेगा मैं अपनी नज़र झुका पाऊँ तो भी बहोत है!
जब होगा उनकों एहसास और वह दौड़ कर आयेगा,
देखकर आईने में अपने आँसू छुपा पाऊँ तो भी बहोत है!
पूछेगा ख़ुदा जब भी मुझको आख़िर तेरा ग़म क्या है,
चाँद से अगर मै एक दाग़ भी मिटा पाऊँ तो भी बहोत है! Read less