Mohan ITR Pathak
Literary Colonel
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सुख का महस्रोत हमारे ह्रदय में विद्यमान है।इसकी खोज में निकलना अज्ञानता को प्रदर्शित करता है। सुख कोई मूर्त वस्तु नहीं है जिसे हासिल किया जा सके, छीना जा सके या खोया जा सके। सुख ह्रदय का भाव है जिसे हर परिस्थिति में अनुभव किया जा सकता है।आवश्यकता इस भाव कोआत्मसात करने के लिये पारखी दृष्टिकोण की है।।

चरित्र वृक्ष के समान है जिसकी जड़ों को खाद, पानी और सुरक्षा की आवश्यकता होती है , मान उस वृक्ष की छाया है। किंतु हम वृक्ष ( चरित्र ) की चिन्ता छोड़ छाया ( मान )की चिन्ता करते हैं। जबकि वृक्ष की सुरक्षा से छाया स्वतः प्राप्त हो जाती है

कस्तूरी कब अपनी उपस्थिति दर्ज

हम अपनी क्षमताओं का आकलन न कर दूसरों की उपलब्धि पर आश्चर्य प्रकट करते हैं। जबकि क्षमताओं का शत प्रतिशत उपयोग ही हमें हमारी मंजिल तक पहुँचा सकता है।

कस्तूरी कब अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है? परोपकारी सज्जन के कर्म ही उनकी उपस्थिति का भान करा देते हैं।

कस्तूरी कब अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है? परोपकारी सज्जन के कर्म ही उनकी उपस्थिति का भान करा देते हैं।

सुखी हैं तो सुख के चले जाने की चिन्ता, दुखी हैं तो सुख के आने की चिन्ता । हर परिस्थिति में चिन्ता मनुष्य को अपना गुलाम बनाये रखती है। जीवन मे यदि गुलामी ही करनी है तो चिन्तन और कर्म की जाय गुलामी की नहीं।

जीवन मे यदि गुलामी ही करनी है तो चिन्तन और कर्म की जाय ।।

हम अपनी क्षमताओं का आकलन न कर दूसरों की उपलब्धि पर आश्चर्य प्रकट करते हैं। जबकि क्षमताओं का शत प्रतिशत उपयोग ही हमें हमारी मंजिल तक पहुँचा सकता है।


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