Satish Kumar Sah
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उनकी याद न ही आए तो अच्छा होगा सपनों में न ही तड़पाए तो अच्छा होगा फिर से हमें मनाने की कोशिश कर रहे है उनकी बातों में न ही आए तो अच्छा होगा

देखते देखते सुबह से शाम हो गई भरी महफ़िल में इज्ज़त नीलाम हो गई वो दो जिस्म एक जान कहने वाली रातों रात किसी और की जान हो गई

तेरी हर खामोशी का जवाब लिखा है तुझे पाने वाले ने तुझे अपना सवाब लिखा है तू तो वाकई थी बहुत ही खूबसूरत मेरे ही कांपते हाथों ने तुझे खराब लिखा है

मिलेगा कहां से जब वो था ही नहीं किस्मत में हमनें तो किया प्यार पर वो था ही नहीं फुर्सत में।

कुछ मुझमें कमी थी आंखों में नमी थी वो रात ना ढली थी तुमने हाथ छोड़ा और फिर कभी हमारी बात ना बनी थी


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