शफाफ ए शबनम में छिपा शोला हूं तो कहीं इश्क़ के आग में तपता गोला हूं एक खयाल हूं शरारती, बेबाक ओ बदतमीज़ भी ज़हानियत की ताबीर नहीं, मोहब्बत का ज़लज़ला हू़
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