Bhawna Vishal
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रंग है,रोशनी है,खुशबुएं हैं हर तरफ शाम ओ सुबह ये मौसम ए बहार है..... या मुझे इश्क़ हो गया है कहीं

ना हसरत ए गुलाल थी, ना बेरंग रहने की कोई वजह रंग उदासियों का फिर भी अपने ही हिस्से रहा

" चलो छोड़ो, रहने दो ये सब निगाहों से निगाहों तक, बस समझ से समझ तक ही वरना मैं इजहार ए इश्क़ करूंगी और तुम्हें फिर फिलाॅसोफी लगेगी। "

" ऊधो, प्रेम है सांवरो,प्रीत का रंग उजास रंग रंग का गर भेद मिटे , फिर खूब खिले मधुमास"

वही गहरी, ठहरी, बंजर उदास आंखें हूबहू..मुझ जैसे दिखते हो मालूम होता है तुम भी, शायरी का शौक रखते हो

मां की ममता नहीं, ममता के लिबासों में , तसल्लियां मिला करती हैं मां चली जाए इक बार , तो फिर दोस्तों तो फिर मां कहां मिला करती है

कस कर आलिंगन कर लूं नैनों की कोरो में भर लूं इक स्वप्न अभी तक आधा है फिर सहज ही आऊंगी तुम तक मृत्यु ! ये मेरा वादा है


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