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Episode...
Episode 5 -...
Episode 5
कभी-कभी सोचता हूँ, कि उन दो बाहों के सिवा, जिनमे एक ख़्वाब, एक उम्मीद, थोड़ा सा जिस्म, थोड़ी सी नींद, एक भरोसा, और एक दिल समा जाए उससे ज़्यादा क़ीमती और नायाब क्या हो सकता है।
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आदमी और वक़्त की फ़ितरत यही है, एक समय के बाद दोनों
प्यार ही ऐसा ज़ख़्म है, .. आदमी अकेला ख़ुद होता है, औ
"हर इंसान आपकी ज़िन्दगी से एक वक़्त के बाद चला जाता
कभी-कभी सोचता हूँ, कि उन दो बाहों के सिवा, जिनमे ए
ये एक ऐसे विरह का क़िस्सा है, जिसके एक हाथ पर प्यार
हमें आज पहले से कहीं ज़्यादा संवेदनशील होने की ज़रुर
पिछले कुछ दिनों में जितना वक़्त मुझे ख़ुद के साथ मिल
कुछ नहीं हुआ तुम्हें, ये दर्द है, जो सिर्फ़ सोचते ह
कितने भी उतार चढ़ाव से ज़िन्दगी क्यों न गुज़रे, हम सभ
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