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तू बंध...
तू बंध न जाना...
तू बंध न...
“
तू बंध न जाना पिंजरे में
जो समाज ने कुरीतियों के सरिये से बनाई है।
तू बढ़ चल उस रास्ते पर निरंतर,
जिन सपनों को अपना बनाने की कसम खाई है।।
”
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