“
समय
बहुत रोका पल पल जाते समय को, मैं बोली," अरे रुक तो ज़रा";
समय बोला,"में भी बंधा हूँ अपने कर्म से, किसी के कहने से कैसे रुकूंगा..
मैं अन्नत समय से बिना रुके चलता जा रहा हूँ,
थकूंगा कैसे, क्योंकि सदियों से तुम्हें जगाता आ रहा हूँ । यही मेरा कर्म है, यही मेरा धर्म है।
रतना कौल भारद्वाज
”