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रीति-रिवाजों...

रीति-रिवाजों से बांधकर भी,हौसलों को तुम बांध न सके, दहलीज़ पे रोका मुझे, पर रोक न सके ख्वाबों के शोर को। कमजोर कहकर हर युग में, जिस डोर से बांधा तुमने मुझे, लो उड़ चली मैं अब नील गगन में,पकड़ कर उसी डोर को। मिली साहा

By मिली साहा
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