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मन समंदर...

मन समंदर सोच की ये लहरें जज़्बातों के तूफ़ान में भला अब ये मन कैसे ठहरे ठहराव के उस पल में ज़ख़्म भी कई गहरे तू तो चला गया पार मेरे समंदर के मगर तेरी यादों के निशान अभी भी मुझमें ठहरे

By Gaurav Dhaudiyal
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