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मैं...
मैं आईने की तरह...
मैं आईने की...
“
मैं आईने की तरह होकर भी कभी-कभी अनदेखा कर देता हूं....
यह इश्क है जनाब जीने के लिए कुछ बातों से समझौता करना पड़ता है
द्रविण कुमार चौहान
”
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