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"मां"
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"मां"
निःस्वार्थ...
"मां"
निःस्व...
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"मां"
निःस्वार्थ प्रेम की मूर्ति सिर्फ मां ही होती है, बाकी दुनिया तो सिर्फ स्वार्थ से बंधी होती है।।।
-तेजस्विनी कुमारी
”
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