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कुछ...
कुछ गलियां आज...
कुछ गलियां...
“
कुछ गलियां आज भी
इस फ़िराक़ में बैठी है..
के वो आयेंगे और हमें उठायेंगे,
मगर अहसोस इस बात का है..
वो आज भी अपने कमरे में
आराम से सोये हुए है।
”
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