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किसे पता था...

किसे पता था जो मोहब्बत कभी ज़िंदगी हुआ करती थी वही ताज़ीर बन जाएगी, तोड़कर तमाम ख़्वाबों, वादों और कसमों को, एक अजनबी राहगीर बन जाएगी, अब ख़ामोश मेरी हर शाम है, इंतजार तो पर किसी के आने की कोई आस नहीं, नसीब का खेल ये, चाहे तो बिगाड़ दे, चाहे तो मोहब्बत की तामीर बन जाएगी। मिली साहा

By मिली साहा
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