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कब थमेगी ये दास्तां, कब रुकेगी ये दरिंदगी, आखिर कब तक बेटियां लड़ती रहेंगी,
मर चुकी है आज इंसानियत, कब तक किसी की लाडली ऐसे ही शिकार होती रहेगी,
वो चीखती है,चिल्लाती है,पर पुरुषों के इस समाज में दबा दी जाती है उसकी आवाज़,
एक बेटी का अपमान देश का भी अपमान है,आखिर दुनिया कब समझेगी यह बात।
मिली साहा
”