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जिन्दा...
जिन्दा हूँ इसका...
जिन्दा हूँ...
“
जिन्दा हूँ इसका सबब बूझो ना कैसे
लगे लब से लब पूछो ना किस्से
वो घुलकर उतर गए सांसो में ऐसे
पिघला सूरज सांझ में उतरता जैसे
शर्माजी के शब्द
”
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