“
जीवन के हर मोड़ पर याद आती हैं बचपन की वो बातें,
खेलकूद,हल्ला-गुल्ला और दोस्ती की वो सुनहरी मुलाकातें,
हर पल नए-नए ख़्वाब बुनना, अपनी ही दुनिया में रहना,
अपनी मर्जी के मालिक हम जो मन में आए वही कह देना,
मस्ती,शरारतें और नादानियां यही तो होता था हमारा काम,
हर चिंता, हर उलझन से दूर थी हमारी बचपन की दुनिया।
मिली साहा
”