“
हम दर्द लिखते रहे दिल की कलम से
अहसासो की आह भर कर
लोग पढते रहे
अरमान हमारे टूटते - बिखरते रहे
संजो कर भावनाओ के मोती
स्मृतियो की पोटली मे जोड़ते रहे।
चंद वादे ,शिकवे गिलो, सिरहन तेरे छूने की
कुछ लम्हे अधखिली कलियो से
हम बयान कर ना सके।
लोग पढते रहे।।
वाह करते गए।
आकांक्षा (आंक्षी) रूपा चचरा
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