“
एक सच्चा मित्र राधेय कर्ण था
मैत्री को निभाते निभाते
अपनों का गैर हो गया
अनुजों का बैर हो गया
मित्रता के नाम
जीवन कर गया कुर्बान ।
एक भावुक मित्र कृष्ण था
द्वारकाधीश होकर
मित्रता के वास्ते
दरिद्र मित्र को सिंहासन में बसा गया ।
मित्रता के नाम
कर गया राज ऐश्वर्य कुर्बान ।
”